गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान |
बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान ||
अपने सिर की भेंट देकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करो | परन्तु यह सीख न मानकर और तन, धनादि का अभिमान धारण कर कितने ही मूर्ख संसार से बह गये.|
Here Kabirdas ji is requesting us to surrender the head( The Ego) at the holy feet of the guru. Ignorance of this one thing has prevented so many souls from progressing, from taking help from the living Guru.
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त |
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त ||
गुरु में और पारस - पत्थर में अन्तर है, यह सब सन्त जानते हैं | पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है, परन्तु गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है |
A living enlightened Guru has the power and knowledge to turn an ignorant soul in to an enlightened divinity. Guru importance is un questionable
कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय |
जनम - जनम का मोरचा, पल में डारे धोया ||
कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा है, उसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है | जन्म - जन्मान्तरो की बुराई गुरुदेव क्षण ही में नष्ट कर देते हैं |
The dirt of negativity has made our soul dirty, The guru washes of this dirt with is gentle touchings, practices and empowerments to bring out the hidden divinity in us. He does it out of love for us.
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि - गढ़ि काढ़ै खोट |
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट ||
गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है, भीतर से हाथ का सहार देकर, बाहर से चोट मार - मारकर और गढ़ - गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकलते हैं |
At times Guru has to become strict to shape up the progress of the shishya, never run away from an enlightened , genuine Guru, instead allow him to shape you up.
गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान |
तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान ||
गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं | त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान - दान गुरु ने दे दिया |
What can we offer to the Guru who is divinity in human form, be a good reciever, or the gift will go waste.
जो गुरु बसै बनारसी, शीष समुन्दर तीर |
एक पलक बिखरे नहीं, जो गुण होय शारीर ||
यदि गुरु वाराणसी में निवास करे और शिष्य समुद्र के निकट हो, परन्तु शिष्ये के शारीर में गुरु का गुण होगा, जो गुरु लो एक क्षड भी नहीं भूलेगा |
Even if Guru and shishya are physically away from each other, if the shishya holds Guru in his heart and remembers him all the time, he will still get all the benefit from the Guru.
गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं |
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं ||
गुरु को अपना सिर मुकुट मानकर, उसकी आज्ञा मैं चलो | कबीर साहिब कहते हैं, ऐसे शिष्य - सेवक को तनों लोकों से भय नहीं है |
The disciple who hold Guru as his divinity, as his pride, as his Master and follows his instructions happily, they need not fear anything in the 3 worlds
गुरु सो प्रीतिनिवाहिये, जेहि तत निबहै संत |
प्रेम बिना ढिग दूर है, प्रेम निकट गुरु कंत ||
जैसे बने वैसे गुरु - सन्तो को प्रेम का निर्वाह करो | निकट होते हुआ भी प्रेम बिना वो दूर हैं, और यदि प्रेम है, तो गुरु - स्वामी पास ही हैं |
Those who stay close to Guru but have no love for Guru are still far far away from the Guru. If the love is in the heart Guru is close to you.
गुरु मूरति आगे खड़ी, दुतिया भेद कुछ नाहिं|
उन्हीं कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटि जाहिं ||
गुरु की मूर्ति आगे खड़ी है, उसमें दूसरा भेद कुछ मत मानो | उन्हीं की सेवा बंदगी करो, फिर सब अंधकार मिट जायेगा|
When an enlightened Living Guru is in front, see everything in him, serve him, the darkness of ignorance will go away very fast.
ज्ञान समागम प्रेम सुख, दया भक्ति विश्वास |
गुरु सेवा ते पाइए, सद् गुरु चरण निवास ||
ज्ञान, सन्त - समागम, सबके प्रति प्रेम, निर्वासनिक सुख, दया, भक्ति सत्य - स्वरुप और सद् गुरु की शरण में निवास - ये सब गुरु की सेवा से निलते हैं |
Only by remaining in contact with an enlightened living guru, directly or in mind, by serving him in whatever way possible, by observing him and listening to his teachings and with surrender to him, one really lerans and gets
Real knowledge. Brotherhood, love for all, tendernes, compassion, attachment free joy, devotion, and ultimately the knowledge of self
सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय |
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय ||
सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते |
This one is my favourate, and I wish those who reject the Living genuine Guru out of ignorance or misconception can get some change of mind. If Kabirdas ji is saying so, find a Living Guru, surrender to him, and you will know that What Kabirdas ji saying is absolutely true. Guru mahima aparampar hai, no words can discribe it.
पंडित यदि पढि गुनि मुये, गुरु बिना मिलै न ज्ञान |
ज्ञान बिना नहिं मुक्ति है, सत्त शब्द परमान ||
बड़े - बड़े विद्व्न शास्त्रों को पढ - गुनकर ज्ञानी होने का दम भरते हैं, परन्तु गुरु के बिना उन्हें ज्ञान नही मिलता | ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं मिलती |
This is the truth. By reading one only understands intellectually, how can it match up to an enlightened Guru who has EXPERIENCED every word written and more. Its like The Pandit can discribe the fruit for one hour even without seeing and tasting, But a Gyani explains the fruit out of experience of eating. How can both be compared.
कहै कबीर तजि भरत को, नन्हा है कर पीव|
तजि अहं गुरु चरण गहु, जमसों बाचै जीव ||
कबीर साहेब कहते हैं कि भ्रम को छोडो, छोटा बच्चा बनकर गुरु - वचनरूपी दूध को पियो | इस प्रकार अहंकार त्याग कर गुरु के चरणों की शरण ग्रहण करो, तभी जीव से बचेगा |
Be like a child in front of the Guru, let the mind be like a clean slate, be hungry for the knowledge, be free of arrogance of knowing from whatever you have learned so far, or have read. Do not let it come in the way of learning.
सोई सोई नाच नचाइये, जेहि निबहे गुरु प्रेम |
कहै कबीर गुरु प्रेम बिन, कितहुं कुशल नहिं क्षेम ||
अपने मन - इन्द्रियों को उसी चाल में चलाओ, जिससे गुरु के प्रति प्रेम बढता जये | कबीर साहिब कहते हैं कि गुरु के प्रेम बिन, कहीं कुशलक्षेम नहीं है |
Try to win Guru's love, one can win Gurus love by loving Guru like a family member, taking care of his needs, by giving pure bhakti, by supporting his wor, by offering slefless service, by practicing the sabhana sincerely, by surrendering the Ego and accepting him whole heartedly. Once you win Gurus love, everything else will be taken care.
तबही गुरु प्रिय बैन कहि, शीष बढ़ी चित प्रीत |
ते कहिये गुरु सनमुखां, कबहूँ न दीजै पीठ ||
शिष्य के मन में बढ़ी हुई प्रीति देखकर ही गुरु मोक्षोपदेश करते हैं | अतः गुरु के समुख रहो, कभी विमुख मत बनो |
Most important teaching, let the love for Guru keep growing in your heart, this love will wash of all the negativity , will prepare you for self realisation. Never ever leave an genuine enligheted Guru, be with him.
Tasmay Shri Guruve namah